एच.एच. महाराजा हनवन्तसिंहजी के जन्म शताब्दी वर्ष |

दिनांकः-04.10.2023
एच.एच. महाराजा हनवन्तसिंहजी जन्म शताब्दी वर्ष के तहत दीनदयाल शोध संस्थान नई दिल्ली, मेहरानगढ़ म्यूज्रि़यम ट्रस्ट, इण्टैक जोधपुर चैप्टर एवं इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के संयुक्त तत्वावधान में जल संरक्षण व संवर्द्धन की परम्पराएँ: लूणी नदी के विशेष संदर्भ में विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला मेहरानगढ़ में प्रारम्भ |
जोधपुर। एच.एच. महाराजा हनवन्तसिंहजी जन्म शताब्दी वर्ष के तहत दीनदयाल शोध संस्थान नई दिल्ली, मेहरानगढ़ म्यूज्रि़यम ट्रस्ट, इण्टैक जोधपुर चैप्टर एवं इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के संयुक्त तत्वावधान में ‘जल संरक्षण व संवर्द्धन की परम्पराएँ: लूणी नदी के विशेष संदर्भ में’ विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का प्रारम्भ मेहरानगढ़ दुर्ग के चौकेलाव महल में हुआ। इस कार्यशाला के उद्घाटन समारोह के मुख्य अतिथि भारत सरकार के जल शक्ति मंत्री श्री गजेन्द्रसिंहजी शेखावत थे। उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा वर्तमान समय में जल संरक्षण की चुनौती का संकट हमारे सामने है। इस चुनौती को देखते हुए हमें जल की उपलब्धता को सुनिश्चित करना है। इसलिए हमें इस सम्बन्ध में भरपूर प्रयास करने चाहिए। प्रकृति के घटकों का जो दोहन हो रहा है, उस दोहन को रोका जाये। गोचर, तालाब, ओरण, अंगोर, नदी आदि को सुरक्षित रखा जाये। नदियों में अतिक्रमण नहीं हो उनमें दुषित पानी नहीं जाये। नदियों की शुद्धता एवं पवित्रता पर हर व्यक्ति का ध्यान जाये, यह सभी प्रयास हमें सामूहिक रूप से करने होंगे तभी हम अपने प्राचीन जल स्रोतों को सुरक्षित रख सकेंगे। आज के इस युग में उनके रख-रखाव की सख्त आवश्यकता है। क्योंकि पानी अमूल्य है। जल है तो जगदीश है। जीवन के लिए सबसे ज्यादा पानी की आवश्यकता है। इसलिए हमें मिलकर पानी को बचाने का प्रयास करना चाहिए। उन्होंने कहा कि भूगर्भ के जल संरक्षण की भी आवश्यकता है। जमीन पर पानी को ज्यादा से ज्यादा कैसे रोके इस पर हमें विचार करना है। जल के आन्दोलन को जन-जन का आन्दोलन बनाना होगा। इसके लिए ऐसी कार्यशालाओं की आवश्यकता है जिसमें जल संरक्षण के लिए मंथन हो। उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता करते हुए इण्टैक राजस्थान चैप्टर के संयोजक महाराजा श्री गजसिंहजी ने कहा कि जल को बचाने के लिए जनशक्ति को जागरूक करने की आवश्यकता है। प्राचीन जलस्रोतों का संरक्षण करें, उनकी साफ-सफाई करें। पानी का सही उपयोग हो। उन्होंने कहा कि लूणी नदी अभी भी हमारी आवश्यकता को पूरी कर सकती है। बशर्तें कि इसका रख-रखाव हो, बरसात होने पर नदी का पानी आगे बढ़ेगा। इसके कारण कुओं का जल स्तर भी बढ़ेगा और किसान अपनी फसलों की अच्छी सिंचाई कर सकेगा। मारवाड़ की संस्कृति में जल को बहुत ही महत्त्वपूर्ण माना गया है। उद्घाटन समारोह के मुख्य वक्ता दीनदयाल शोध संस्थान के महासचिव अतुल जैन ने पूरे देश की जल संस्कृति का चित्रण प्रस्तुत करते हुए कहा कि जल संरक्षण के लिए समाज की भागीदारी सबसे ज्यादा होनी चाहिए। गाँवों के लोगों की परम्पराओं को महत्व दिया जाना चाहिए। उनके जो लोकगीत है, लोक गाथाएं है, वे बहुत ही प्रेरणादायी है। उन्होंने कहा कि प्राचीन समय में  बरसात से पूर्व नदियों की सफाई होती थी। गांव वाले इकट्ठे होकर काम करते, सामूहिक रूप से भोजन करते इन सबका वर्णन लोकगीतों में मिलता है। ऐसी जानकारियों को वर्तमान समय में इकट्ठा करने की आवश्यकता है। वर्तमान समय में जल जंगल, जमीन और जानवर इनकी सुरक्षा बहुत जरूरी है। इण्टैक बाड़मेर चैप्टर के संयोजक रावल किशनसिंहजी जसोल ने अपने उद्बोधन में कहा सन् 2012 में जल भागीरथी के तहत लूणी नदी पर कार्यशाला हुई और 2022 में भी इण्टैक चैप्टर के तहत लूणी नदी को बचाने और उसके संरक्षण के सम्बन्ध में विचार-विमर्श हुआ। इसी कड़ी में आज यह दो दिवसीय कार्यशाला हो रही है, जो लूणी नदी के जल संरक्षण की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है। बाहर से पधारे
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हुए विद्वान इस सम्बन्ध में अपने विचार रखेंगे और उन विचारों से निश्चित रूप से सार्थक परिणाम प्राप्त होंगे। लूणी नदी अभी भी अस्तित्व में है, इसे पूर्ण अस्तित्व में लाने के लिए सकारात्मक और सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है। सभी नागरिकों को इसके प्रति जागरूक करें। जल संरक्षण के सम्बन्ध में महाराजा उम्मेदसिंहजी एवं महाराजा हनवन्तसिंहजी की महत्वपूर्ण भागीदारी रही और जल भागीरथी के माध्यम से महाराजा श्री गजसिंहजी का भी महत्वपूर्ण योगदान है। उद्घाटन समारोह को आशीर्वचन प्रदान करते हुए महामण्डलेश्वर सैनाचार्य श्री अचलानन्दगिरिजी ने कहा कि जितने भी प्राचीन जल स्रोत है, उनका रख-रखाव बहुत ही जरूरी है। नदियों को स्वच्छ रखना आवश्यक है। उनमें गंदा पानी नहीं आने दिया जाये। आने वाले समय में इन प्राचीन जल स्रोतों का विकास हो क्योंकि जल संकट के समय ये स्रोत बहुत ही उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं।
इण्टैक जोधपुर चैप्टर के संयोजक डॉ. महेन्द्रसिंह तंवर ने अपने स्वागत उद्बोधन में बताया कि प्राचीन एवं ऐतिहासिक लूणी नदी के संरक्षण और संवर्द्धन के लिए पिछले कई वर्षों से आमजन और विशिष्ट लोगों द्वारा प्रयास किये जा रहे हैं। इसी के तहत मेहरानगढ़ में दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है। उन्होंने सभी विद्वजनों एवं अतिथियों का इस कार्यशाला में पधारने हेतु आभार व्यक्त किया।
इससे पूर्व कार्यक्रम का प्रारम्भ माँ सरस्वती की मूर्ति एवं महाराजा हनवन्तसिंहजी की तस्वीर के सम्मुख दीप प्रज्ज्वलन एवं पुष्पांजलि से हुआ। तत्पश्चात् मंचासीन अतिथियों को पुष्पगुच्छ देकर उनका अभिनन्दन किया गया।
पुस्तकों का लोकार्पण –
इस अवसर पर डॉ. महेन्द्रसिंह तंवर एवं डॉ. विमलेश राठौड़ द्वारा संपादित पुस्तक ‘‘राष्ट्रीय इतिहास में राठौड़’ एवं डॉ. महेन्द्रसिंह तंवर द्वारा संपादित ओरण (सेक्रेड लेण्ड) कंर्जेवेशन ऑफ दी कम्युनिटी, कन्जर्व्ड एरिया (आईसीसीएएस) का लोकार्पण अतिथियों द्वारा किया गया। उद्घाटन समारोह में दीनदयाल शोध संस्थान की डॉ. मीना जांगिड़ द्वारा धन्यवाद ज्ञापित किया गया।
उद्घाटन समारोह में बिग्रेडियर शक्तिसिंह, जस्टिस रघुवेन्द्रसिंह राठौड़, जगतसिंह राठौड़, बिग्रेडियर एम.एस. जोधा, भागीरथ वैष्णव, प्रसन्नपुरी गोस्वामी, रामजी व्यास, कर्नल मनोहरसिंह कोरणा, डॉ. विक्रमसिंह गुन्दोज,एम.एल. जांगिड़, डॉ सद्दीक मोहम्मद, यशोवर्द्धन शर्मा, सी.पी. देवल, डॉ. देवीलाल पंवार, जैसलमेर संयोजक भोपालसिंह भाटी, डॉ. जितेन्द्रसिंह भाटी, डॉ. शक्तिसिंह खाखड़की, डॉ. विमलेश राठौड़, रणजीतसिंह ज्याणी, शैलेश माथुर, घर्मांशु बोहरा, सुनिल लघाटे, सुनिल कल्ला, समर्थ शर्मा, सवाई पंवार, महक चौधरी इत्यादि सहित कई गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।
उद्घाटन समारोह के बाद दो तकनीकी सत्र आयोजित हुए। प्रथम सत्र में तीन विद्वानों द्वारा प्रजेण्टेशन के माध्यम से उद्बोधन हुआ। प्रथम वक्ता कृषि एवं पारिस्थितिकी संस्थान के संस्थापक अमनसिंह ने कहा कि पूरे देश और दुनिया में नदी के संरक्षण को लेकर बहुत सारे काम चल रहे हैं, लेकिन लूणी नदी पर अभी तक कोई खास काम नहीं हुआ है। उन्होंने लूणी नदी की दुर्दशा पर ऐतिहासिक पक्ष रखा। उन्होंने इस नदी के बारे में दो वर्ष तक अध्ययन किया। नदी के आस-पास रहने वाले लोगों की बातें सुनी। चरवाहा समुदाय किस तरह इस नदी पर निर्भर थे। किसान अपनी खेती करते थे। लेकिन अब ऐसा नहीं हो पा रहा है। क्यांेकि नदी का पानी आगे बढ़ ही नहीं पाता है। उससे 1950 से 1980, 1980 से 2000 और 2000 से 2020 तक का नदी के सम्बन्ध में अध्ययन किया और कई निष्कर्ष
निकाले। द्वितीय वक्ता मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के भूगोल विभाग के प्रो. एन.एस. राठौड़ ने पूर्व वैदिक काल से आधुनिक काल तक के जल के प्राचीन स्रोतों के बारे में बताते हुए लूणी नदी और उसके अपवाह क्षेत्र के विभिन्न भौगोलिक पहलुओं पर प्रकाश डाला। तृतीय वक्ता पूर्व प्रिंसीपल वैज्ञानिक आईसीएआर ने दी फ्लोरा ऑफ लूणी बेसिन विषय पर अपने उद्बोधन में कहा कि नदियों में जो भी वृक्ष, घास आदि को हमें बचाकर रखना है। प्रकृति के साथ किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ नहीं करनी है। उन्होंने नदियों में मिलने वाले विभिन्न वृक्षों एवं घास के नाम भी गिनाये जो लोगों के लिए उपयोगी सिद्ध होते हैं। इस सत्र की अध्यक्षता एनएचडी इण्टैक के प्रिंसिपल डायरेक्टर मनु भटनागर ने की।
द्वितीय सत्र में लूणी नदी की वर्तमान स्थिति पर तीन वक्ताओं ने अपने विचार व्यक्त किये। सर्वप्रथम इण्टैक जालोर चैप्टर के संयोजक गजेन्द्रपाल सिंहजी पोसाणा ने कहा कि यह कार्यशाला नदी की धरोहर को बचाने का अच्छा अवसर है। इसके लिए हम सभी को मिलकर सामूहिक प्रयास करने चाहिए। मारवाड़ी घोड़ों का मुख्य क्षेत्र लूणी क्षेत्र रहा है। वहां का चारा, आबोहवा व पानी शुद्ध होने के कारण घोड़े भी बहुत प्रसिद्ध रहे हैं। इसके अलावा लूणी नदी के आस-पास कई धार्मिक स्थल भी रहे हैं जिनका धार्मिक दृष्टि से विशिष्ट महत्व है। उन्होंने लूणी नदी का जो नुकसान हो रहा है उसके बारे में भी विस्तार से प्रकाश डाला। इस सत्र के दूसरे वक्ता कर्नल मोहनसिंहजी बाबरा ने कहा कि हमें प्रकृति के साथ छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए। पेड़ नहीं काटे। गंदी चीजें नदी में नहीं डालें। इस सम्बन्ध मंे उनका कहना था कि सबसे पहले वहां के स्थानीय लोगों को साथ लें, उनकी आवश्यकताओं की जानकारी लें फिर उनके विचारों के मुताबिक नदी के संरक्षण के क्षेत्र में आगे बढ़ा जाये। हमें जल के सम्बन्ध में धार्मिक मान्यताओं को पुनः प्रारम्भ करना चाहिए। तृतीय वक्ता राजस्थान पत्रिका, पुणे के ब्यूरो चीफ ओमसिंहजी राजपुरोहित ने कहा कि नौ नदियां, निनानवे नाले पिचियाक बांध में आते थे। सन् 1889 में महाराजा जसवन्तसिंहजी द्वितीय ने जसवन्त सागर बांध बनवाया। वह बांध हजारों लोगों की रोजी रोटी का साधन था। लेकिन सन् 1989 से इस बांध में पानी की आवक रूक गई। पानी का स्तर नीचे चला गया। उक्त बांध के आस-पास के गांव वाले पलायन करके अन्यत्र चले गये। वर्तमान में न तो बांध में इतना पानी आता है और न ही जमीन सिंचित होती है। इसलिए बांधों का पुनर्भरण किया जाना अति आवश्यक है। क्योंकि हजारों लोगों की रोजी-रोटी का आधार बांध ही है। बांध भर जायेंगे तो चादर चलने पर इनका पानी नदियों में जायेगा, नदियों हरी-भरी होंगी और किसान खुशहाल होंगे। इसलिए जल धरोहर को खण्डित होने से बचाया जाये। इस सत्र की अध्यक्षता मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर के भूगोल विभाग के प्रो. एन.एस. राठौड़ ने की।
इस दो दिवसीय कार्यशाला के दूसरे दिन 5 अक्टूबर, 2023 को तीन तकनीकी सत्रों होंगे। प्रथम सत्र प्रातः 9.30 प्रारम्भ होगा। सायं 4.15 बजे समापन समारोह प्रारम्भ होगा। समापन समारोह के मुख्य अतिथि पदम्श्री लक्ष्मणसिंहजी लापोड़िया होंगे एवं अध्यक्षता जस्टिम रघुवेन्द्रसिंहजी राठौड़ करेंगे। श्री अमनसिंह व ठाकुर उम्मेदसिंह अराबा विशिष्ट अतिथि के रूप में सम्मिलित होंगे।
दो दिवसीय कार्यशाला में दिल्ली, गुजरात, अलवर, उदयपुर, जोधपुर, बाड़मेर, पाली, नागौर इत्यादि के विषय विशेषज्ञ भाग ले रहे हैं।

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