कोरोना महामारी, लॉकडाउन और अनलॉक ये सब अब लगता है आम नागरिकों के लिये बहुत कुछ सामान्य बात हो गई है लेकिन अगर अनलॉक होते ही राजनैतिक गलियारे गहमाने लगे तो सोचनीय है कि आखिर ये राजनैतिक पार्टियां क्यो अनलॉक होने का इंतजार करते रहते है। अनलॉक का शब्दार्थ भी अब लगता है बदल गया है। सामान्य नागरिकों के लिये खुलकर सांस लेने, खरीददारी करने और महामारी के डर को कम करने से होता है वहीं राजनैतिक दल इस अनलॉक को राजनैतिक अखाड़ा खुलने का संकेत मान लेते है फिर चाहे वो स्थानीय राजनीति हो, राज्य की या देष की।
क्या ये मान लेना चाहिए कि अब सब कुछ सामान्य हो गया है, महामारी का दौर समाप्त हो चुका है और अब नेता और अभिनेता सब अपने रंगों में आ चुके है। सबको अपना रंगमंच सजाना है, प्यादे बिछाने है और जनता को रंग-बिरंगे सपनों से भरी दुनिया में ले जाना है जिससे कि वो अपने उपर होने वाले सवालों से बच सके, पूरी महामारी के समय में अनदेखा की गई अपनी जिम्मेदारियों से बच सके और जनता को किसी भी प्रकार से जवाब नहीं देना पड़े कि आखिर इस महामारी में उन्होंने आम लोगों को हुई परेषानियों के लिये क्या किया, जिन संस्थानों को बन्द किया उनसे बेरोजगार हुए लोगों के लिये क्या सुविधाएं दी, जिन कलाकारों को भूखे सोना पड़ा उनकी रोटी का इंतजाम क्यों नहीं किया। सरकार अगर ये कहती है कि 80 करोड़ लोगों को हमने खाना दिया, अगर उनकी बात मानें तो देष की आधी आबादी से भी ज्यादा। मैंने अपने घर के आस-पास 20 घरों में देखा मगर मुझे कहीं मुफ्त का खाना सरकार की तरफ से किसी को मिला हो नहीं देखा। तो क्या ये भी एक वैसा ही भ्रम जनता को परोसा गया है जैसा कि पिछले साल मई में 20 लाख करोड़ का पैकेज परोसा गया था। क्या ये अनलॉक सिर्फ राजनैतिक दलों को छूटे वादे परोसने और जनता का गुमराह करने का मौका भर होता है। ये वायदे अनलॉक होने पर ही क्यों होते हैं जब भारत का आम नागरिक सड़कों पर हजारों किलोमीटर पैदल चल रहा था, जब बच्चे भूखे मर रहे थे, जब रोजगार छिन लिया गया था, जब मां के सामने बेटा, बेटे के सामने बाप, भाई के सामने बहन और बहन के सामने मां ऑक्सिजन की कमी से दम तोड़ रहे थे तब इन राजनैजिक दलों की सहानुभूति कहां गई थी। आज भी जब अनलॉक हुआ तो पिछले साल की याद ताजा हो गई, वहीं सरकारी वादे और झूठे सपने आम जनता को परोसे जा रहे है क्यांेकि अब अनलॉक हो चुका है ये आजाद हो चुके है, चुनावी माहौल बनाना है, अपना वोट बैंक संवारना है, झूठे वादों का का पोटला खुल चुका है क्योंकि अब अनलॉक हो चुका है।
अब्दुल नसीर
एडिटर
राजस्थान द गोल्डन डेजर्ट