मुम्बई के अतुल सत्य कौशिक निर्देशित नाटक बालिगंज 1990 का हुआ मंचन

भारतीय फिल्म एवं रंगमंच जगत के मशहूर अभिनेता अनूप सोनी और निवेदिता भट्टाचार्य जी ने किया प्रभावी अभिनय।

राजस्थान के पहले अंतराष्ट्रीय थियेटर फेस्टिवल के समापन दिवस पर नाट्य निर्देशन के बदलते स्वरूप विषय पर हुआ रंग मंथन
शाम को मुम्बई के अतुल सत्य कौशिक निर्देशित नाटक बालिगंज 1990 का हुआ मंचन।

जोधपुर। राजस्थान संगीत नाटक अकादमी, जोधपुर द्वारा आयोजित जोधपुर इंटरनेशनल थियेटर फेस्टिवल के पांचवे और समापन दिवस पर रंगमन्थन टॉक शो में नाट्य निर्देशन के बदलते स्वरूप विषय पर प्रभावी संवाद अयोजित हुआ, जिसमें देश के वरिष्ट नाट्य निर्देशक भानु भारती, रमेश बोराणा एवं श्री अतुल सत्य कौशिक से बातचीत की जोधपुर के सक्रिय रंगकर्मी अरु व्यास ने l
गहन चर्चा में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के पायोनियर एवं लीजेंडरी लेखक निर्देशक भानु भारती ने नाटक होने की संभावना को समाज की गहरी जरूरत बताया। घर गायब हो रहे हैं और बाजार उग रहे हैं और बाजारवाद में रंगमंच के लिए छत ढूंढना बहुत जरूरी है। किसी भी नाटक में वर्तमान परिप्रेक्ष्य परिलक्षित होना आज की नाटक की आवश्यकता है। नाटक एक पात्र की मानिन्द है जिसमें कलाओं के सभी आयाम समाविष्ट होकर उसमें ढल जाते हैं, इन सभी आयाम का समावेश वर्तमान पीढ़ी को नाटक के प्रति अवश्य आकर्षित करेगा। मशीन और मनुष्य के इस संधि काल में मनुष्य को मनुष्य बने रहना जरूरी है। स्कूल ऑफ थॉट पर बात करते हुए प्रसिद्ध नाट्य निर्देशक अतुल सत्य कौशिक ने कि निर्देशक या तो मेक बिलीव वातावरण तैयार करता है या सेट वैसा ही दिखाना चाहता है जैसा प्रेक्षक उसे देखना चाहता है यह दोनों ही सिद्धान्त भौतिक और मनोवैज्ञानिक स्तर पर दृश्य निर्माण करने की पंहुच तय करता है। उन्होंने यह भी कहा कि अज्ञानी के पास आत्मविश्वास भरपूर होता है जबकि ज्ञानी हमेशा संशय में रहता है, जाने बिना ज्ञान की बात करना पीढियों को नष्ट करना है कलाकार में नैसर्गिक गुण स्वयं उद्घाटित होते हैं, परिचर्चा में वरिष्ठ नाट्यधर्मी व राज्यमंत्री, राज्य मेला प्राधिकरण रमेश बोराणा ने कहा कि दुस्साहस करने वाले निर्देशकों की वजह से मंच पर दुर्घटनाएं होती हैं। उन्होंने बलपूर्वक कहा कि इतिहास पढ़ने से वर्तमान मजबूत होता है। दृष्टि हमें खुद ही पैदा करनी पड़ती है, नाटक कभी कोई क्रान्ती नहीं करता कला के प्राकृतिक गुणों के साथ अभ्यास से रंगमंच पर निखार आता है। निर्देशक एवं राष्ट्रीय स्तर के लेखक बृजमोहन व्यास ने नाटक के क्या, क्यूं और किसके लिये पर अपने वक्तव्य में कहा कि जैविक कारणों से उपजे व्यक्ति के पास तार्किक उत्तर नहीं होता है, नाटक के लिये नाटकीय परिस्थितियों का होना भी एक स्वर्णिम अवसर होता है, इस बात का यदि ख्याल रखा जाए तो नाटक अपने मूल मंत्र तक जरूर पहुंचता है और नाट्य निष्पत्ति अवश्य होती है।
सशक्त अभिनेता एवं टीवी सितारा अनूप सोनी ने चर्चा को आगे बढ़ाते हुए बताया कि रंगमंच और सिनेमा दोनों ही डायरेक्टर के माध्यम है अभिनेता का पूरा भरोसा निर्देशक पर होना चाहिए क्योंकि निर्देशक और लेखक कहानी के साथ ज़्यादा वक्त गुज़ारते हैं। वह किसी भी कहानी को पूरी टोटलिटी में देखते हैं। रंग अभिनेत्री प्रीता ठाकुर ने बताया कि जोधपुर में मंचित उनके नाटक ’हमारी नीता की शादी’ मैं जोधपुर की प्रेक्षकों ने प्रेम दिया एवं नाटक के रसास्वादन को भली-भांति महसूस किया। मॉडरेटर अरू व्यास ने सवालों के माध्यम से इस पूरी परिचर्चा का संचालन किया। अंत में प्रश्नों के समाधान भी किये गये। अकादमी की अध्यक्ष बिनाका जेश मालू ने कार्यक्रम शुरू होने से पूर्व सभी का माल्यार्पण , शॉल ओढ़ाकर एवं स्मृति चिन्ह देकर स्वागत किया। कार्यक्रम में अकादमी के कोषाध्यक्ष रमेश भाटी नामदेव, सदस्य शब्बीर हुसैन के साथ राजस्थान भर के अभिनेता, निर्देशक, रंगकर्मी और विद्यार्थी मौजूद रहे।

शाम को खेला गया नाटक बालिगंज 1990

भव्य ऐतिहासिक प्रस्तुतियों, संगीत, हास्य और सामाजिक सांचों में एक ब्रांड मूल्य बनाने के बाद,लेखक और निर्देशक अतुल सत्य कौशिक अपने दर्शकों के लिए एक और मूल नाटक के साथ आ रहे हैं , इस बार हिंदी में एक शानदार सस्पेंस थ्रिलर प्ले “1990 – प्यार एक अंतहीन रहस्य है” लेकर आ रहे हैं। यह द फिल्म्स एंड थिएटर सोसायटी और लैंड ऑफ कल्चर का सह-प्रोडक्शन है।
” बालीगंज 1990″ एक नब्बे मिनट की थ्रिलर प्ले है जो वर्ष 1990 में सेट की गई है और कहानी बालीगंज(तत्कालीन) कलकत्ता के एक प्रसिद्ध स्थान में सामने आती है। कार्तिक और वासुकी के बीच 10 साल से भी ज्यादा समय तक बेहद भावुक संबंध रहे, कार्तिक ने वासुकी को छोड़ दिया और मुंबई में अपने सपनों का पीछा करने के लिए निकल पड़ा। वासुकी अब एक प्रसिद्ध चित्रकार बिनॉय दास से शादी करती है और वह कार्तिक और उनके असफल जीवन के लिए जिम्मेदार उनके असफल प्यार को स्वीकार करते हुए पछतावा और प्रतिशोध से भरा जीवन जीती है। वासुकी दुर्गापूजा की शाम को कार्तिक को अपनी हवेली में कॉफी के लिए आमंत्रित करती है। वासुकी की आँखों में उसी दस साल के जुनून और प्यार को देखकर कार्तिक थोड़ा उलझन में है और खुशी से हैरान है।
यह नाटक देश के प्रतिष्ठित रंग मोहत्सवों जैसे कि भारत रंग मोहत्सव, जयपुर रंग मोहत्सव और काला घोड़ा आर्ट फेस्टिवल में भी मंचित किया जा चुका है और यह नाटक एक फिल्म में भी रूपांतरित किया जा चुका है।

नाटक में
अतुल सत्य कौशिक – निर्देशक

अनूप सोनी – कार्तिक (अभिनेता)

निवेदिता भट्टाचार्य – वासुकी (अभिनेता)

अमन बाजपेयी – ईश्वर काका (अभिनेता)

लतिका जैन – ध्वनि संचालिका

तरुण डांग – लाइट ऑपरेटर

देवांश गुलाटी – बैकस्टेज मैनेजर (प्रोडक्शन)

सुमित नेगी – प्रोडक्शन मैनेजर

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *